Same Sex Marriage: केंद्र ने SC से कहा- तीन राज्य समलैंगिक विवाह के विरोध में – same sex marriage Supreme court fifth day hearing updates ntc


देश में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को लेकर बुधवार को नौंवे दिन भी सुनवाई हुई. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही है.

केंद्र सरकार की ओर से मामले की पैरवी कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पांच सदस्यीय पीठ को बताया कि केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह पर राज्यों की राय जानने के लिए 18 अप्रैल को उन्हें पत्र लिखा था. इस दौरान तीन राज्यों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने का विरोध किया. 

केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष बताया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता दिए जाने पर राय जानने के लिए सभी राज्यों को पत्र लिखा गया था. लेकिन अभी तक सात राज्यों मणिपुर, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, असम, सिक्किम और राजस्थान से जवाब मिले हैं.

राजस्थान, असम, आंध्र प्रदेश सेम सेक्स मैरिज के विरोधी

उन्होंने बताया कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के कॉन्सेप्ट का तीन राज्यों राजस्थान, असम और आंध्र प्रदेश ने विरोध किया है. वहीं, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम ने इस पर विचार करने के लिए थोड़ा और समय मांगा है.

आंध्र प्रदेश ने केंद्र को लिखे जवाबी पत्र में कहा है कि उन्होंने इस मामले पर राज्य के विभिन्न धार्मिक प्रमुखों से चर्चा की, जिन्होंने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के फैसले का विरोध किया. 

इस मामले पर अपना रुख रखते हुए राजस्थान ने कहा कि समलैंगिक विवाह से समाज का ताना-बाना बिगड़ेगा, जिससे समाज और परिवार के ढांचे पर बुरा असर पड़ सकता है.

वहीं, असम ने कहा कि कानून बनाने का विशेषाधिकार केंद्र और राज्य दोनों का है. अदालतों को हमारे लोकतांत्रिक ढांचे के मूल सिद्धांतों के अनुसार कानून से संबंधित मामलों को देखना चाहिए. 

इससे पहले बाल अधिकारों की रक्षा के राष्ट्रीय आयोग, महिला मंत्रालय और चाइल्ड डेवलेपमेंट की ओर से मामले में पेश हुई एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने पीठ को बताया कि इस केस का असर बच्चों पर पड़ेगा.

क्या है मामला?

दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.

इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

याचिकाओं में क्या है मांग?

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 को डिक्रिमिनलाइज कर दिया था. यानी भारत में अब समलैंगिक संबंध अपराध नहीं हैं. लेकिन अभी भारत में समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं मिली है. ऐसे में इन याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है.

– समलैंगिकों की मांग है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए. एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए. 

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